Tuesday, 3 April 2018

प्रेम मंदिर - A short view






भगवान श्रीकृष्ण की क्रीड़ास्थली श्रीवृंदावनधाम स्थित प्रेम मंदिर अत्यंत भव्य धार्मिक एवं आध्यात्मिक परिसर है। इसका उद्घाटन 15-17 फरवरी, 2012 को गोलोकवासी जगद्गुरु कृपालु जी महाराज के कर-कमलों द्वारा संपन्न हुआ था। लगभग 30,000 टन इटैलियन संगमरमरों और विशेष कूका रोबोटिक मशीनों द्वारा नक्काशीकृत इस भव्य मंदिर के अधिष्ठात्र भगवान श्रीकृष्ण एवं अधिष्ठात्री देवी राधारानी हैं। लगभग 50 एकड़ भूमि में बना यह अद्वितीय मंदिर मनोरम बगीचों एवं फव्वारों से घिरा है, जहां शाम के वक्त लाइटिंग देखने का अहसास अत्यंत अद्भुत है। 1008 ब्रजलीलाओं के साथ ही भारतवर्ष की प्राचीन समृद्ध इतिहास को अत्यंत खूबसूरती के साथ उकेरा गया है। मंदिर के सामने लगभग 73,000 वर्ग फीट, मीनार-रहित तथा गुंबदनुमा बने यहां के सत्संग हॉल में लगभग 25,000 लोग एक साथ जमा हो सकते हैं।
श्रीवृंदावनधाम में आज से लगभग 5 हजार वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण और राधारानीजी ने अधिकारी जीवों को महारास का रस प्रदान किया था। उसी दिव्य रस को विश्व के पंचम मूल जगद्गुरुकृपालु जी महाराज ने प्रेम मंदिर के रूप में प्रकट कर दिया है। महाराज के अनुसार,श्रीमद्भागवत ग्रंथ ही वेदांत का भाष्य है। उसी श्रीमद्भागवत को प्रेम मंदिर के स्वरूप में संसार के समक्ष प्रस्तुत किया गया है। प्रेम मंदिर में प्रवेश करते ही हृदय आनंद से आह्लादित हो उठता है। प्रेम मंदिर की बाहरी दीवारों पर श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध में वर्णित श्रीकृष्ण लीलाओं का जीवंत चित्रण मन को मोह लेता है। मंदिर के भूमितल की बाहरी दीवारों पर श्रीकृष्ण की मनमोहक ब्रजलीलाओं के दर्शन होते हैं। प्रथम तल की बाहरी दीवारों पर मथुरा एवं द्वारका की लीलाएं क्रमबद्ध रूप से चित्रित हैं। कुब्जा-उद्धार, कंस-वध, देवकी-वसुदेव की कारागृह से मुक्ति, सान्दीपनी मुनि के गुरुकुल में जाकर कृष्ण-बलराम का विद्याध्ययन, रुक्मिणी-हरण, सोलह हजार एक सौ आठ रानियों का वरण, नारद जी द्वारा श्रीकृष्ण की गृहस्थावस्था के
दर्शन, श्रीकृष्ण का अपने अश्रुओं द्वारा सुदामा के चरण पखारना, सुदामा एवं उनके परिवार का एक रात्रि में काया-पलट, कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण का गोपियों से पुनर्मिलन, रुक्मिणी आदि द्वारिका की रानियों का श्रीराधा एवं गोपियों के साथ मिलन, श्रीकृष्ण द्वारा उद्धव को अंतिम उपदेश एवं दर्शन तत्पश्चात स्वधाम-गमन आदि लीलाएं भी चित्रित की गई हैं। विशेष कर श्रीकृष्ण का राधाजी के चरणों में अपना मुकुट रखना एवं उनकी चरण सेवा करना आदि दृश्य प्रेम तत्व की प्रधानता का निरुपण कर प्रेम मंदिर के नाम को चरितार्थ करता है। वास्तव में वास्तुकला का बेजोड़ नमूना प्रेम मंदिर भक्ति एवं आस्था का वह अनोखा संगम है, जिसमें भक्ति और ईश्वरीय प्रेम की अलौकिक धारा प्रवाहित होती है। वहीं सुंदर हरे-भरे बगीचों से युक्त सायं के समय लाल, नीली, पीली और दूधिया रोशनी में चमचमाता प्रेम मंदिर अपनी खूबसूरती की एक अलग ही छटा बिखेरता है। यही कारण है कि महज 6 वर्षो में ही प्रेम मंदिर न केवल वृंदावन, बल्कि पूरे ब्रज क्षेत्र में नव-पर्यटन आकर्षण के रूप में स्थापित हो चुका है।