अगर है चाह, हो घनश्याम की मुझपर नज़र पहले,
तो उनके आशिकों की ख़ाक-ए-पा में कर गुज़र पहले।
तरीका है अजब इस इश्क की मंज़िल में चलने का,
कदम पीछे गुज़रता है, गुज़रता है सर पहले।
उसी का घर बना पहले, दिल-ए-मोहन की बस्ती में,
कि जिसका दीन-ओ-दुनिया दोनों से उजड़ा है घर पहले।
मज़ा तब है कि कुर्बानी में हर एक ज़िद से बढ़ता हो,
ये तन पहले, ये जाँ पहले, ये दिल पहले, ज़िगर पहले।
ना घबरा गर ये तेरी आँख के ये अश्रु लुटते हैं,
यकीं रख ये कि उल्फ़त में नफ़ा पीछे, ज़रर पहले।।
9138194298
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