Thursday 30 April 2015

Kripalu Vachanamrit



Kripalu Vachanamrit


Today's Darshan- Prem Mandir, Vrindavan

Kripa Sadhya

Today's Darshan- Bhakti Mandir

Krishna Bhakti


श्यामसुंदर के वियोग की अग्नि में पांचो कोश अपने आप भस्म हो जाते हैं एवं तीनों गुण , तीनों कर्म , तीनों दोष भी स्वयं समाप्त हो जाते हैं।

तुम जीवन - जीवन जीवनधन


तुम जीवन - जीवन जीवनधन |
तिन जीवन जीवन बस जीवन, जिन जीवन, किय जीवन अरपन |
जिन किय निज कहँ अरपन तिन कहँ, अरपन कर निज कहँ यह तव पन |
तिन दिय भार डारि तोहिं शिशु जनु, तुम सँभार जननी जनु छन छन |
तिनके अवगुन गिनत न अगनित, अगनित करि तिन कहँ इक गुन गन |
कह ‘कृपालु’ पुनि ते जिन जन जन, तिन मानत निज जन महँ प्रिय – जन ||

भावार्थ - हे जीवनधन श्यामसुन्दर ! तुम समस्त जीवात्माओं की आत्मा हो | उन्हीं जीवों का जीवन धन्य है जिन जीवों ने अपना जीवन तुम्हें समर्पित कर दिया है | जो जीव अपने जीवन को तुम्हें समर्पित कर देते हैं उन्हें तुम भी अपने आप को समर्पित कर देते हो, यह तुम्हारा प्रण है | अपने को समर्पित किये हुये जीव नवजात शिशु की भाँति निश्चिन्त हो जाते हैं और तुम माता की तरह क्षण - क्षण में उनके योगक्षेम को वहन करते हो | उन शरणागत जीवों के अगणित अवगुणों को एक भी नहीं मानते एवं उनके एक गुण को अगणित करके मानते हो | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि फिर उन शरणागत जीवों के भी जो शरणागत हो जाते हैं उन्हें तुम अपने प्रियजनों में सर्वाधिक प्रियजन मानते हो |

( प्रेम रस मदिरा मिलन – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज

अगर है चाह, हो घनश्याम


अगर है चाह, हो घनश्याम की मुझपर नज़र पहले,
तो उनके आशिकों की ख़ाक-ए-पा में कर गुज़र पहले।
तरीका है अजब इस इश्क की मंज़िल में चलने का,
कदम पीछे गुज़रता है, गुज़रता है सर पहले।
उसी का घर बना पहले, दिल-ए-मोहन की बस्ती में,
कि जिसका दीन-ओ-दुनिया दोनों से उजड़ा है घर पहले।
मज़ा तब है कि कुर्बानी में हर एक ज़िद से बढ़ता हो,
ये तन पहले, ये जाँ पहले, ये दिल पहले, ज़िगर पहले।
ना घबरा गर ये तेरी आँख के ये अश्रु लुटते हैं,
यकीं रख ये कि उल्फ़त में नफ़ा पीछे, ज़रर पहले।।

आदेश


संसारी व्यवहार करो संसार का काम करो , लेकिन एक प्रमुख आदेश है कि अपने गुरु और इष्टदेव को सदा अपने साथ रियलाइज़ (realize) करो ।
....जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

क्षणभंगुर जीवन


आत्मा का कमाने का मामला सोचो। तुम आत्मा हो , शरीर नहीं हो। शरीर को तो छोड़ना पड़ेगा , जबरदस्ती छुड़वाया जायगा शरीर। इसलिये हर साल आत्म-निरिक्षण करो और फील करो, और अगले साल की तैयारी करो कि अब की साल काम बना लेना है। क्या पता पूरा साल न मिले। छः महीने ही मिलें। एक ही महीना मिले।

क्षणभंगुर जीवन की कलिका ,
कल प्रात को जाने खिली न खिली।

------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

श्याम मिलन


हे ! करुणा सागर, दीन बंधु, पतितपावन, तुम्हारी कृपा के बिना कोई तुम्हारी सेवा भी तो नहीं कर सकता । हमारी गति, मति, रति सर्वस्व तुम्ही हो । अकिंचन के धन, निर्बल के बल, अशरण-शरण, कहाँ से लाएँ तुम्हें प्रसन्न करने के लिए सतत रुदन और करुण क्रंदन । अनंत जन्मो का विषयानंदी मन संसार के लिए आँसू बहाना चाहता है श्याम मिलन के लिए नहीं । अकारण-करुण कुछ ऐसी कृपा कर दो की मन निरन्तर युगल चरणों का स्मरण करते हुए ब्रजरस धन का लोभी बन जाये । रोम रोम प्रियतम के दर्शन के लिए, स्पर्श के लिए, मधुर मिलन के लिए, इतना व्याकुल हो जाए की आंसुओं की झड़ी लग जाए ओर हम आँसुओ की माला पहनकर तुम्हें प्रसन्न कर सकें पश्चात निशिदिन श्यामा श्याम मिलन हित आँसू बहाते रहें । अपने अकारण करुण विरद की रक्षा करते हुए हे ! कृपालु, हे ! दयालु हमारा सर्वस्व बरबस लेकर ब्रजरस प्रदान करो । किसी भी प्रकार यह स्वप्न साकार करो की हम तुम्हारे वास्तविक गौर-श्याम मिलित स्वरूप को हृदय मे सदा सदा के लिए धारण करके प्रेम रस सागर मे निमग्न हो अश्रु पूरित नेत्रों से तुम्हारी विरुदावली का अनंत काल तक गान करते रहें ।

-जगद्गुरुत्तम भक्तियोगरसावतार कृपालु महाप्रभु ।

Bhakti Shatak


हरि विरही विरहाग ते , पंचकोश जरि जाय।
त्रिगुण त्रिकर्म त्रिदोष सब , आपुहिं जाय नसाय।।७७।।

भावार्थ - श्यामसुंदर के वियोग की अग्नि में पांचो कोश अपने आप भस्म हो जाते हैं एवं तीनों गुण , तीनों कर्म , तीनों दोष भी स्वयं समाप्त हो जाते हैं।

मेरी ज़िंदगी तू है...


मेरी ज़िंदगी भी तू है, मेरी आरज़ू भी तू है....!

मेरी ज़िंदगी है ज़िंदा....... तेरी यादों के सहारे.......!!

हरि विरही विरहाग ते , पंचकोश जरि जाय।
त्रिगुण त्रिकर्म त्रिदोष सब , मेरी ज़िंदगी भी तू है, मेरी आरज़ू भी तू है....!

मेरी ज़िंदगी है ज़िंदा....... तेरी यादों के सहारे.......!!


Shyama Shyam Geet


गुरु करे उसे जिसे मिले श्याम श्यामा।
कान फुँकवाने ते ना बने कभु कामा।।

Friday 24 April 2015

Rare photograph of Shri Maharajji

Updesh


Kripamayi Rada Rani


Teri Sharan

Shri Radhey


तेरी हर याद से शुरू होती है मेरी हर सुबह,
फिर यह केसे कह दु की, मेरा दिन खराब है..

श्यामा श्याम गीत - 61


याते मायाबद्ध ते न प्यार करो बामा |
हरि गुरु ते ही प्यार करो आठु यामा || ६१ ||

मायाधीन जीव से प्रेम करने का परिणाम यही निकलेगा कि मृत्यु के बाद उसी की प्राप्ति होगी | इसलिए जीव को एकमात्र हरि एवं गुरु से ही निरंतर प्रेम संबंध जोड़ना है |

-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज

भक्ति शतक (दोहा - 78)


हरि संयोग वियोग महँ , बड़ो वियोग बताय।
कारण यह कि वियोग महँ , कण-कण श्याम लखाय।।७८।।

भावार्थ - श्यामसुन्दर के सयोंग एवं वियोग में वियोग को ही श्रेष्ठ माना गया है। क्योंकि वियोग में सर्वत्र केवल श्यामसुन्दर का ही दर्शन होता है।

-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

Sunday 19 April 2015

Always remember

Always remember

Always remember

Always remember

Always remember

Always Remember


Always Remember

Sadguru vani se

 

jo guru se gyan milta hai usko hum baar baar chintan ke dwara dridh nahi karte isliye ander gyan rahte hoye bhi agyan haavi  rahta hai〰

🐽🎍Radhe Radhe 🎍

इंसान और भगवान


एक इंसान घने जंगल में भागा जा रहा था। शाम हो गई थी। अंधेरे में कुआं दिखाई नहीं दिया और वह उसमें गिर गया। गिरते-गिरते कुएं पर झुके पेड़ की एक डाल उसके हाथ में आ गई। जब उसने नीचे झांका, तो देखा कि कुएं में चार अजगर मुंह खोले उसे देख रहे हैं और जिस डाल को वह पकड़े हुए था, उसे दो चूहे कुतर रहे थे। इतने में एक हाथी आया और पेड़ को जोर-जोर से हिलाने लगा। वह घबरा गया और सोचने लगा कि हे भगवान अब क्या होगा। उसी पेड़ पर मधुमक्खियों का छत्ता लगा था। हाथी के पेड़ को हिलाने से मधुमक्खियां उडऩे लगीं और शहद की बूंदें टपकने लगीं। एक बूंद उसके होठों पर आ गिरी। उसने प्यास से सूख रही जीभ को होठों पर फेरा, तो शहद की उस बूंद में गजब की मिठास थी। कुछ पल बाद फिर शहद की एक और बूंद उसके मुंह में टपकी। अब वह इतना मगन हो गया कि अपनी मुश्किलों को भूल गया। तभी उस जंगल से शिव एवं पार्वती अपने वाहन से गुजरे। पार्वती ने शिव से उसे बचने का अनुरोध किया। भगवान शिव ने उसके पास जाकर कहा-मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं। मेरा हाथ पकड़ लो। उस इंसान ने कहा कि एक बूंद शहद और चाट लूं, फिर चलता हूं। एक बूंद, फिर एक बूंद और हर एक बूंद के बाद अगली बूंद का इंतजार। आखिर थक-हारकर शिवजी चले गए। वह जिस जंगल में जा रहा था, वह जंगल है दुनिया और अंधेरा है अज्ञान। पेड़ की डाली है आयु। दिन-रात रूपी चूहे उसे कुतर रहे हैं। घमंड का मदमस्त हाथी पेड़ को उखाडऩे में लगा है। शहद की बूंदें सांसारिक सुख हैं, जिनके कारण मनुष्य खतरे को भी अनदेखा कर देता है। यानी, सुख की माया में खोए मन को भगवान भी नहीं बचा सकते

Shri Radhey

Shri Radhey


Shri Radhey


Shri Radhey


Kripalu Vachnamrit


""Jaise kisi ma ka bachcha kho jaye ,tarapti rahti hai din raat aashu bahati hai,is prakar aanshu bahana hoga hari guru ke liye""

💝radhe radhe💝

Prem Tatva

Geeta Saar