Saturday, 3 September 2016

Mother


O India! Forget not that the ideal of thy womanhood is Sita, Savitri, Damayanti; forget not that the God thou worshippest is the great Ascetic of ascetics, the all renouncing Shankara, the Lord of Umâ; forget not that thy marriage, thy wealth, thy life are not for sense-pleasure, are not for thy individual personal happiness; forget not that thou art born as a sacrifice to the Mother's altar; forget not that thy social order is but the reflex of the Infinite Universal Motherhood; forget not that the lower classes, the ignorant, the poor, the illiterate, the cobbler, the sweeper, are thy flesh and blood, thy brothers. Thou brave one, be bold, take courage, be proud that thou art an Indian, and proudly proclaim, I am an Indian, every Indian is my brother. Say, The ignorant Indian, the poor and destitute Indian, the Brahmin Indian, the Pariah Indian, is my brother. Thou, too, clad with but a rag round thy loins proudly proclaim at the top of thy voice: The Indian is my brother, the Indian is my life, India's gods and goddesses are my God. India's society is the cradle of my infancy, the pleasure-garden of my youth, the sacred heaven, the Varanasi of my old age. Say, brother: The soil of India is my highest heaven, the good of India is my good, and repeat and pray day and night, O Thou Lord of Gauri, O Thou Mother of the Universe, vouchsafe manliness unto me! O Thou Mother of Strength, take away my weakness, take away my unmanliness, and make me a Man!”

-Swami Vivekananda

Wednesday, 31 August 2016

सबसे बड़ा पूण्य


एक राजा बहुत बड़ा प्रजापालक था, हमेशा प्रजा के हित में प्रयत्नशील रहता था. वह इतना कर्मठ था कि अपना सुख, ऐशो-आराम सब छोड़कर सारा समय जन-कल्याण में ही लगा देता था . यहाँ तक कि जो मोक्ष का साधन है अर्थात भगवत-भजन, उसके लिए भी वह समय नहीं निकाल पाता था.

एक सुबह राजा वन की तरफ भ्रमण करने के लिए जा रहा था कि उसे एक देव के दर्शन हुए. राजा ने देव को प्रणाम करते हुए उनका अभिनन्दन किया और देव के हाथों में एक लम्बी-चौड़ी पुस्तक देखकर उनसे पूछा- “ महाराज, आपके हाथ में यह क्या है?”
देव बोले- “राजन! यह हमारा बहीखाता है, जिसमे सभी भजन करने वालों के नाम हैं.”
राजा ने निराशायुक्त भाव से कहा- “कृपया देखिये तो इस किताब में कहीं मेरा नाम भी है या नहीं?”
देव महाराज किताब का एक-एक पृष्ठ उलटने लगे, परन्तु राजा का नाम कहीं भी नजर नहीं आया.

राजा ने देव को चिंतित देखकर कहा- “महाराज ! आप चिंतित ना हों , आपके ढूंढने में कोई भी कमी नहीं है. वास्तव में ये मेरा दुर्भाग्य है कि मैं भजन-कीर्तन के लिए समय नहीं निकाल पाता, और इसीलिए मेरा नाम यहाँ नहीं है.”
उस दिन राजा के मन में आत्म-ग्लानि-सी उत्पन्न हुई लेकिन इसके बावजूद उन्होंने इसे नजर-अंदाज कर दिया और पुनः परोपकार की भावना लिए दूसरों की सेवा करने में लग गए.
कुछ दिन बाद राजा फिर सुबह वन की तरफ टहलने के लिए निकले तो उन्हें वही देव महाराज के दर्शन हुए, इस बार भी उनके हाथ में एक पुस्तक थी. इस पुस्तक के रंग और आकार में बहुत भेद था, और यह पहली वाली से काफी छोटी भी थी.
राजा ने फिर उन्हें प्रणाम करते हुए पूछा- “महाराज ! आज कौन सा बहीखाता आपने हाथों में लिया हुआ है?”
देव ने कहा- “राजन! आज के बहीखाते में उन लोगों का नाम लिखा है जो ईश्वर को सबसे अधिक प्रिय हैं !”
राजा ने कहा- “कितने भाग्यशाली होंगे वे लोग ? निश्चित ही वे दिन रात भगवत-भजन में लीन रहते होंगे !! क्या इस पुस्तक में कोई मेरे राज्य का भी नागरिक है?
देव महाराज ने बहीखाता खोला, और ये क्या, पहले पन्ने पर पहला नाम राजा का ही था।
राजा ने आश्चर्य चकित होकर पूछा महाराज मेरा इसमे कैसे लिखा हुआ है,मैं तो मन्दिर भी कभी कभार ही जाता हूँ?
देव ने कहा राजन इसमे आश्चर्य की क्या बात है ? जो लोग निष्काम भाव होकर संसार की सेवा करते हैं ,जो लोग संसार के उपकार में अपना जीवन अर्पण करते हैं ,जो लोग मुक्ती का लोभ भी त्यागकर प्रभू के निर्बल सन्तानो की सेवा सहायता में अपना योगदान देते हैं उन त्यागी महापुरुषों का भजन स्वयं ईस्वर करता है ,ऐ राजन ! तू मत पछता की तू पूजा पाठ नहीं करता है , लोगों की सेवा कर तू असल में भगवान की ही पूजा करता है.
परोपकार और निःस्वार्थ लोकसेवा किसी भी उपासना और पूजन से बढ़कर है।
देव ने वेदों का उदाहरण देते हुए कहा
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छनम् समाः एवान्त्वाप नान्यतोअस्ति व कर्म लिप्यते नरे .."
अर्थात्-- कर्म करते हुए सौ वर्ष जीने की इच्छा करो तो कर्म बन्धन में लिप्त हो जाओगे , राजन! भगवान दीन दयालू है .उन्हें खुसामद नही भाती बल्कि आचरण भाता है..सच्ची भक्ती तो यही है की परोपकार करो ,दीन दुखियों का हित साधन करो ,अनाथ ,विधवा,किसान व निर्धन आज अत्याचारियों से सताए जाते हैं 
इनकी यथाशक्ति सहायता और सेवा करो यही परम भक्ती है...
राजा को आज देव के माध्यम से बहुत बड़ा ज्ञान मिल चूका था और अब राजा भी समझ गया कि परोपकार से बढ़कर कुछ भी नहीं और जो परोपकार करते हैं वही भगवान के सबसे प्रिय होते हैं ।
मित्रों जो ब्यक्ति निःस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करने के लिए आगे आते हैं ,परमात्मा हर समय उनके कल्याण के लिए यत्न करता है. हमारे पूर्वजों ने भी कहा है- "परोपकाराय
पुण्याय भवति" अर्थात दूसरों के लिए जीना दूसरों की सेवा को ही पूजा समझ कर कर्म करना ,परोपकार के लिए अपने जीवन को सार्थक बनाना ही सबसे बड़ा पूण्य है . और जब आप भी ऐसा करेंगे तो स्वतः ही आप भी उस ईस्वर के प्रिय भक्तों में सामिल हो जायेंगे।
🙏🏻 श्री राधे राधे🙏🏻

Thursday, 25 August 2016

भगवान् श्री कृष्ण जी के 51 नाम और उन के अर्थ


*1 कृष्ण* : सब को अपनी ओर आकर्षित करने वाला.।
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*2 गिरिधर*: गिरी: पर्वत ,धर: धारण करने वाला। अर्थात गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले।
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*3 मुरलीधर*: मुरली को धारण करने वाले।
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*4 पीताम्बर धारी*: पीत :पिला, अम्बर:वस्त्र। जिस ने पिले वस्त्रों को धारण किया हुआ है।
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*5 मधुसूदन:* मधु नामक दैत्य को मारने वाले।
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*6 यशोदा या देवकी नंदन*: यशोदा और देवकी को खुश करने वाला पुत्र।
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*7 गोपाल*: गौओं का या पृथ्वी का पालन करने वाला।
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*8 गोविन्द*: गौओं का रक्षक।
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*9 आनंद कंद:* आनंद की राशि देंने वाला।
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*10 कुञ्ज बिहारी*: कुंज नामक गली में विहार करने वाला।
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*11 चक्रधारी*: जिस ने सुदर्शन चक्र या ज्ञान चक्र या शक्ति चक्र को धारण किया हुआ है।
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*12 श्याम*: सांवले रंग वाला।
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*13 माधव:* माया के पति।
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*14 मुरारी:* मुर नामक दैत्य के शत्रु।
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*15 असुरारी*: असुरों के शत्रु।
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*16 बनवारी*: वनो में विहार करने वाले।
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*17 मुकुंद*: जिन के पास निधियाँ है।
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*18 योगीश्वर*: योगियों के ईश्वर या मालिक।
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*19 गोपेश* :गोपियों के मालिक।
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*20 हरि*: दुःखों का हरण करने वाले।
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*21 मदन:* सूंदर।
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*22 मनोहर:* मन का हरण करने वाले।
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*23 मोहन*: सम्मोहित करने वाले।
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*24 जगदीश*: जगत के मालिक।
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*25 पालनहार*: सब का पालन पोषण करने वाले।
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*26 कंसारी*: कंस के शत्रु।
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*27 रुख्मीनि वलभ*: रुक्मणी के पति ।
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*28 केशव*: केशी नाम दैत्य को मारने वाले. या पानी के उपर निवास करने वाले या जिन के बाल सुंदर है।
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*29 वासुदेव*:वसुदेव के पुत्र होने के कारन।
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*30 रणछोर*:युद्ध भूमि स भागने वाले।
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*31 गुड़ाकेश*: निद्रा को जितने वाले।
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*32 हृषिकेश*: इन्द्रियों को जितने वाले।
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*33 सारथी*: अर्जुन का रथ चलने के कारण।
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*35 पूर्ण परब्रह्म:* :देवताओ के भी मालिक।
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*36 देवेश*: देवों के भी ईश।
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*37 नाग नथिया*: कलियाँ नाग को मारने के कारण।
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*38 वृष्णिपति*: इस कुल में उतपन्न होने के कारण
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*39 यदुपति*:यादवों के मालिक।
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*40 यदुवंशी*: यदु वंश में अवतार धारण करने के कारण।
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*41 द्वारकाधीश*:द्वारका नगरी के मालिक।
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*42 नागर*:सुंदर।
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*43 छलिया*: छल करने वाले।
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*44 मथुरा गोकुल वासी*: इन स्थानों पर निवास करने के कारण।
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*45 रमण*: सदा अपने आनंद में लीन रहने वाले।
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*46 दामोदर*: पेट पर जिन के रस्सी बांध दी गयी थी। 
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*47 अघहारी*: पापों का हरण करने वाले।
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*48 सखा*: अर्जुन और सुदामा के साथ मित्रता निभाने के कारण।
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*49 रास रचिया*: रास रचाने के कारण।
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*50 अच्युत*: जिस के धाम से कोई वापिस नही आता है।
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*51 नन्द लाला*: नन्द के पुत्र होने के कारण।
🙏🌺 *।। जय श्री कृष्णा ।।* 🌺🙏

माखन चोर


दुर्योधन ने श्री कृष्ण की पूरी नारायणी सेना मांग ली थी।
और अर्जुन ने केवल श्री कृष्ण को मांगा था।
उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन की चुटकी (मजाक) लेते हुए
कहा:
"हार निश्चित हैं तेरी, हर दम रहेगा उदास ।
माखन दुर्योधन ले गया, केवल छाछ बची तेरे पास ।"
अर्जुन ने कहा :- हे प्रभु
"जीत निश्चित हैं मेरी, दास हो नहीं सकता उदास ।
माखन लेकर क्या करूँ, जब माखन चोर हैं मेरे पास...!!!!
" *जय श्री कृष्ण* "

Friday, 19 August 2016

गुरु शिष्य


बात कुछ इस तरह है कि जब श्री रामकृष्ण परमहंस को केंसर हुआ था,तब बीमारी के कारण वे खाना नही खा पाते थे। 
स्वामी विवेकानंद अपने गुरु की इस हालात से बहुत चिंतित थे।
एक दिन परमहंस जी ने पूछा,
ठाकुर:"नरेंद्र, क्या तुझे वो दिन याद है,जब तू अपने घर से मेरे पास मंदिर में आता था, तूने दो-दो दिनों से कुछ नहीं खाया होता था। परंतु अपनी माँ से झूठ कह देता था की तूने अपने मित्र के घर खा लिया है,ताकि तेरी गरीब माँ थोड़े बहुत भोजन को तेरे छोटे भाई को परोस दे। है न ?"
नरेन्द्र ने रोते-रोते हां में सर हिला दिया।
ठाकुर फिर बोले,"और जब तू यहां मेरे पास मंदिर आता,तो अपने चहरे पर ख़ुशी का मख़ौटा पहन लेता था । लेकिन में भी तो कम नही।झट जान जाता की तेरे पेट में चूहों का पूरा कबीला धमा-चौकड़ी मचा रहा है, की तेरा शरीर क्षुधाग्रस्त है।और फिर तुझे अपने हाथो से लड्डू,पेड़े,मख्खन-मिश्री खिलाता था। है ना?"
नरेन्द्र ने सुबकते हुए गर्दन हिलाई।
अब स्वामी रामकृष्ण फिर से मुस्कराये और पूछा-"कैसे जान लेता था मै यह बात? कभी सोचा है तूने? 
नरेन्द्र सिर उठाकर परमहंस को देखने लगे।
ठाकुर:"बता न, मैं कैसे तेरी आंतरिक स्थिति को जान लेता था ?"
नरेन्द्र-"क्योंकि आप अंतर्यामी माँ है,ठाकुर।"
ठाकुर:"अंतर्यामी,अंतर्यामी किसे कहते है?"
नरेन्द्र-"जो सब के अंदर की जाने"
ठाकुर:"कोई अंदर की कब जान सकता है ?"
नरेन्द्र-"जब वह स्वयं अंदर में ही विराजमान हो।"
ठाकुर:"याने में तेरे अंदर भी बैठा हूँ.....हूँ ?"
नरेन्द्र-"जी बिल्कुल। आप मेरे ह्रदय में समाये हुए है।"
ठाकुर:"तेरे भीतर में समाकर में हर बात जान लेता हूँ। हर दुःख दर्द पहचान लेता हु।तेरी भूख का अहसास कर लेता हूँ तो क्या तेरी तृप्ति मुझ तक नही पहुचती होगी ?"
नरेन्द्र-"तृप्ति ?"
ठाकुर:"हा तृप्ति!जब तू भोजन खाता है और तुझे तृप्ति होती है,क्या वो मुझे तृप्त नही करती होगी ?
अरे पगले, गुरु अंतर्यामी है,अंतर्जगत का स्वामी है। वह अपने शिष्यो के भीतर बैठा सबकुछ भोगता है। में एक नहीं हज़ारों मुखो से खाता हूँ। तेरे,लाटू के,काली के,गिरीश के,सबके। याद रखना,गुरु कोई बाहर स्थित एक देह भर नहीं है। वह तुम्हारे रोम-रोम का वासी है। तुम्हे पूरी तरह आत्मसात कर चुका है। अलगाव कही है ही नहीं। अगर कल को मेरी यह देह नहीं रही,तब भी जिऊंगा,तेरे जरिए जिऊंगा। में तुझमे रहूँगा,तू मुझमे।"

Thursday, 18 August 2016

एक गहन विश्राम जीवन की थकान के बाद

मृत्यु के क्षण में लोगों को रोते, उदास, बेचैन देखते हो - वह घबराहट मृत्यु की वजह से नहीं आती
वह घबराहट तो खो गये जीवन के बहुमूल्य अवसर के कारण आती है

एक अवसर मिला था, हाथ में आया और चला गया
मृत्यु से कोई कभी भयभीत नही होता, क्योंकि जिसे तुम जानते नहीं, उससे तुम भयभीत कैसे होओगे? मृत्यु को तुमने कभी देखा? उससे तुम डरोगे कैसे? अनजान से भय कैसा? उसने तुम्हें कभी कोई नुकसान पहुंचाया? कोई हानि की, जो तुम रोओगे, तड़पोगे, चिल्लाओगे? नहीं, असली बात और है।

मृत्यु के क्षण में तुम्हें पहली दफे समझ आती है कि सारा जीवन बेकार गया 
बेकार के कार्यो में लगा रहा
अब समय न बचा और यह मृत्यु सामने आ गयी, अब क्या करूं? तुम्हारी सारी दीनता तुम्हारे जीवन भर के असफल जाने की कथा है
 
जिसने जीवन को ठीक से जीया और जिसने जीवन के रहस्य को जाना -पहचाना और जिसके मंदिर में परमात्मा प्रविष्ट हुआ 
 जिस के मनमंदिर का सिंहासन खाली न रहा
जिसके ह्रदय में प्रेम का रस भर गया और जिसकी रसना पर राम का नाम रहा - वह मृत्यु का आनन्द से स्वागत करता है।
जिसने जीवन को जाना, उसकी कोई मृत्यु नहीं है।
 वह जीवन को जानकर मृत्यु को विश्राम की तरह पाता है - एक गहन विश्राम जीवन की थकान के बाद

Saturday, 16 July 2016

Best message of Life


*पृथ्वी* पर कोई भी *व्यक्ति* ऐसा नहीं है
जिसकी कोई *समस्या* न हो और
पृथ्वी पर कोई समस्या ऐसी नहीं है
जिसका कोई *समाधान* न हो...

*समस्या का समाधान इस बात पर निर्भर करता है कि हमारा सलाहकार कौन है*। 

ये बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि
*दुर्योधन* *शकुनि* से सलाह लेता था
और *अर्जुन* *श्रीकृष्ण* से

शख्सियत

शख्सियत अच्छी होगी !
तभी दुश्मन बनेगे ,
वरना बुरे की तरफ , देखता ही कौन हैं !!
पत्थर भी उसी पेड़ पर फेंके जाते हैं, जो फलों से लदा होता है , 
देखा है किसी को सूखे पेड पर पत्थर फेंकते हुए.?

Sunday, 22 May 2016

खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ

खवाहिश  नही  मुझे  मशहुर  होने  की।
आप  मुझे  पहचानते  हो  बस  इतना  ही  काफी  है।
अच्छे  ने  अच्छा  और  बुरे  ने  बुरा  जाना  मुझे। क्यों  की  जीसकी  जीतनी  जरुरत  थी  उसने 
उतना  ही  पहचाना  मुझे।
 ज़िन्दगी  का  फ़लसफ़ा  भी   कितना  अजीब  है, 
शामें  कटती  नहीं,  और  साल  गुज़रते  चले  जा  रहे  हैं....!!
एक  अजीब  सी  दौड़  है  ये  ज़िन्दगी, 
जीत  जाओ  तो  कई  अपने  पीछे  छूट  जाते  हैं,
 और  हार  जाओ  तो  अपने  ही  पीछे  छोड़  जाते  हैं।
बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर...
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है..

मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना ।।

ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है

जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने
न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.
एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली..
वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!

सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!

सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब....
बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |

जीवन की भाग-दौड़ में -
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ?
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..

एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम
और
आज कई बार
बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..

कितने दूर निकल गए,
रिश्तो को निभाते निभाते..
खुद को खो दिया हमने,
अपनों को पाते पाते..

लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है,
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..

"खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,
लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह
करता हूँ..

मालूम है कोई मोल नहीं मेरा,
फिर भी,
कुछ अनमोल लोगो से
रिश्ता रखता हूँ...!

उत्तम समय

"समस्या" के बारे में सोचने से,
बहाने मिलते हैं,
"समाधान" के बारे में सोचने पर रास्ते मिलते हैं...

ज़िन्दगी को "आसान" नहीं, 
बस खुद को "मजबूत" बनाना पड़ता है।
उत्तम समय कभी नहीं आता, 
समय को उत्तम बनाना पड़ता है ...

Wednesday, 11 May 2016

Surya Ketu Nadi

Cows are receiver's of the auspicious rays from all heavenly constellations. Thus she contains influences of all constellations. Wherever there is a cow, there is influence of all heavenly constellations; blessings of all gods. Cow is the only divine living being that has aSurya Ketu Nadi (vein connected to sun) passing through her backbone. Therefore the cow's milk, butter and ghee have golden hue. This is because Surya ketu Nadi, on interaction with solar rays produces gold salts in her blood. These salts are present in the cow's milk and cow's other bodily fluids which miraculously cures many diseases. 
 
Ancient scripture state that “Suryaketu” nerve on cow’s back absorbs harmful radiations and cleanses atmosphere. Mere presence of cows is a great contribution to environment.

पागल बाबा - वृन्दावन

अवश्य पढ़िये और शेयर कीजिये (पागल बाबा वृन्दावन ) कृष्णभक्तों में खासतौर पर बिहारीजी के भक्तों में एक कथा प्रचलित है। एक गरीब ब्राह्मण बांके बिहारी का भक्त था। एक बार उसने किसी महाजन से कुछ रुपये उधार लिए। हर महीने वह थोड़ा-थोड़ा करके कर्ज चुकाया। आखिरी किस्त के पहले महाजन ने उसे अदालती नोटिस भिजवा दिया कि उधार बकाया है और पूरी रकम व्याज
सहित वापस करे। ब्राह्मण परेशान हो गया। महाजन के पास जा कर उसने बहुत सफाई दी पर कोई असर नहीं हुआ। मामला कोर्ट में पहुंचा। कोर्ट में भी ब्राह्मण ने जज से वही बात कही, मैंने सारा पैसा चुका दिया है। जज ने पूछा, कोई गवाह है जिसके सामने तुम महाजन को पैसा देते थे। कुछ सोचकर उसने बिहारीजी मंदिर का पता बता दिया। अदालत ने मंदिर का पता नोट करा दिया। अदालत की ओर से मंदिर के पते पर सम्मन जारी कर दिया गया। वह
नोटिस बिहारीजी के सामने रख दिया गया। बात आई गई हो गई। गवाही के दिन एक बूढ़ा आदमी जज के सामने गवाह के तौर पर पेश हुआ। उसने कहा कि पैसे देते समय मैं साथ होता था और इस-इस तारीख को रकम वापस की गई थी। जज ने सेठ का बही- खाता देखा तो गवाही सही निकली। रकम दर्ज थी, नाम फर्जी डाला गया था। जज ने ब्राह्मण को निर्दोष करार दिया। लेकिन उसके मन में यह उथल पुथल मची रही कि आखिर वह गवाह था कौन। उसने ब्राह्मण से पूछा। ब्राह्मण ने बताया कि
बिहारीजी के सिवा कौन हो सकता है। इस घटना ने जज को इतना विभोर कर दिया किया कि वह इस्तीफा देकर, घर-परिवार छोड़कर फकीर बन गया। कहते है कि वही न्यायाधीश बहुत साल बाद पागल बाबा के नाम से वृंदावन लौट कर आया।
आज भी वहां पागल बाबा का बनवाया हुआ बिहारी
जी का एक मंदिर है जिसमें श्रीश्रीराधा-गोविन्द, श्रीश्रीनिताई-गौर श्रीदुर्गा एवं श्रीमहादेव जी विराजमान हैं। पागल बाबा की दिनचर्या में एक अद्भुत चीज़ शामिल थी - उनकी भोजन पद्धति।
वो प्रतिदिन जो साधु संतो का भंडारा होता उसके
बाहर जाते वहाँ पर उनकी जूठन बटोरते फिर उसका आधा प्रभु द्वारिकाधीश को अर्पित करते और आधा स्वयं खाते। उनको लोग बड़ी हेय द्रष्टि से देखते थे पागल तो आखिर पागल। पर प्रभु तो प्रेम के भूखे है,
एक दिन सभी साधुओं ने फैसला किया आज देर से भोजन किया जायेगा और कुछ जूठन भी नहीं छोड़ी जाएगी। पागल बाबा भंडारे के बाहर बैठे इंतज़ार कर रहे थे की कब जूठे पत्तल फेंके जायें और वो भोजन करें। इसी क्रम में दोपहर हो गयी वो भूख से बिलखने लगे। दोपहर के बाद जब बाहर पत्तल फेंके गए तो उनमें कुछ भी जूठन नहीं थी ।उन्होंने बड़ी मुश्किल से एक एक पत्तल पोछ कर कुछ जूठन इकट्ठी की अब शाम हो चुकी थी। वो अत्यंत भूखे थे। उन्होंने वो जूठन उठाई और अपने मुह में डाल ली। पर मुँह में
उसको डालते ही उनको याद आया कि अरे! आज तो
बाँकेबिहारी को अर्पित किये बिना ही भोजन, ऐसा
कत्तई नहीं होगा। अब उनके सामने बड़ी विषम स्थिति थी वो भोजन को अगर उगल देंगे तो अन्न का तिरस्कार और खा सकते नहीं क्योकि प्रभु को अर्पित नहीं किया। इसी कशमकश में वो मुख बंद कर के बैठे रहे और प्रभु का स्मरण करते रहे, वो निरंतर रोते जा रहे थे की प्रभु इस विपत्ति से कैसे छुटकारा पाया
जाये। पर श्रीठाकुर तो सबकी लाज रखते हैं- रात को बाल रूप में उनके पास आये और बोले क्यों रोज़
सबका जूठा खिलाते हो और आज अपना जूठा खिलाने में संकोच कर रहे हो। उनकी आँखों से निरंतर अश्रु निकलते जा रहे थे। प्रभु ने उनकी गोद में बैठ कर उनका मुख खोला और कुछ भाग निकाल कर बड़े प्रेम से उसको खाया। अब पागल बाबा
को उनकी विपत्ति से छुटकारा मिला। ऐसे परम भगवद्भक्त थे श्रीलीलानन्द ठाकुर (पागल बाबा)।
लाडली के लाड़ में, लाडलो बिगर गयो इस लाड़ की लडाई में, बृज में प्रेम बिखर गयो इस प्रेम के बिखराव में, लुटे सब रसिक जन सब सुध बुध खोकर, मैं भी पागल है गयो

जय जय श्री राधे राधे

Tuesday, 10 May 2016

मृत्यु

अर्जुन  श्री कृष्णजी से बोले :-
केशव ,जब मृत्यु सभी की होनी है तो हम सत्संग भजन सेवा सिमरन क्यों करे जो इंसान मौज मस्ती करता है मृत्यु तो उसकी भी होगी  ।

श्री कृष्णजी ने अर्जुन से कहा :- हे  पार्थ 
बिल्ली जब चूहे को पकड़ती है तो दांतो से पकड़कर उसे मार कर खा जाती है । लेकिन उन्ही दांतो से जब अपने बच्चे को पकड़ती है तो उसे मारती नहीं बहुत ही नाजुक तरीके से एक जगह से दूसरी जगह पंहुचा देती है । दांत भी वही है मुह भी वही है पर परिणाम अलग अलग । ठीक उसी प्रकार मृत्यु भी सभी की होगी पर एक प्रभु के धाम में और दूसरा 84 के चक्कर में 🙏

Monday, 9 May 2016

महाकवि कालिदास

(((((((((( विद्वत्ता का घमंड ))))))))))
.
महाकवि कालिदास के कंठ में साक्षात सरस्वती का वास था. शास्त्रार्थ में उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता था. अपार यश, प्रतिष्ठा और सम्मान पाकर एक बार कालिदास को अपनी विद्वत्ता का घमंड हो गया.
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उन्हें लगा कि उन्होंने विश्व का सारा ज्ञान प्राप्त कर लिया है और अब सीखने को कुछ बाकी नहीं बचा. उनसे बड़ा ज्ञानी संसार में कोई दूसरा नहीं. एक बार पड़ोसी राज्य से शास्त्रार्थ का निमंत्रण पाकर कालिदास विक्रमादित्य से अनुमति लेकर अपने घोड़े पर रवाना हुए.
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गर्मी का मौसम था. धूप काफी तेज़ और लगातार यात्रा से कालिदास को प्यास लग आई. थोङी तलाश करने पर उन्हें एक टूटी झोपड़ी दिखाई दी. पानी की आशा में वह उस ओर बढ चले. झोपड़ी के सामने एक कुआं भी था.
.
कालिदास ने सोचा कि कोई झोपड़ी में हो तो उससे पानी देने का अनुरोध किया जाए. उसी समय झोपड़ी से एक छोटी बच्ची मटका लेकर निकली. बच्ची ने कुएं से पानी भरा और वहां से जाने लगी.
.
कालिदास उसके पास जाकर बोले- बालिके ! बहुत प्यास लगी है ज़रा पानी पिला दे. बच्ची ने पूछा- आप कौन हैं ? मैं आपको जानती भी नहीं, पहले अपना परिचय दीजिए. कालिदास को लगा कि मुझे कौन नहीं जानता भला, मुझे परिचय देने की क्या आवश्यकता ?
.
फिर भी प्यास से बेहाल थे तो बोले- बालिके अभी तुम छोटी हो. इसलिए मुझे नहीं जानती. घर में कोई बड़ा हो तो उसको भेजो. वह मुझे देखते ही पहचान लेगा. मेरा बहुत नाम और सम्मान है दूर-दूर तक. मैं बहुत विद्वान व्यक्ति हूं.
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कालिदास के बड़बोलेपन और घमंड भरे वचनों से अप्रभावित बालिका बोली-आप असत्य कह रहे हैं. संसार में सिर्फ दो ही बलवान हैं और उन दोनों को मैं जानती हूं. अपनी प्यास बुझाना चाहते हैं तो उन दोनों का नाम बाताएं ?
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थोङा सोचकर कालिदास बोले- मुझे नहीं पता, तुम ही बता दो मगर मुझे पानी पिला दो. मेरा गला सूख रहा है. बालिका बोली- दो बलवान हैं ‘अन्न’ और ‘जल’. भूख और प्यास में इतनी शक्ति है कि बड़े से बड़े बलवान को भी झुका दें. देखिए प्यास ने आपकी क्या हालत बना दी है.
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कलिदास चकित रह गए. लड़की का तर्क अकाट्य था. बड़े-बड़े विद्वानों को पराजित कर चुके कालिदास एक बच्ची के सामने निरुत्तर खङे थे. बालिका ने पुनः पूछा- सत्य बताएं, कौन हैं आप ? वह चलने की तैयारी में थी.
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कालिदास थोड़ा नम्र होकर बोले-बालिके ! मैं बटोही हूं. मुस्कुराते हुए बच्ची बोली- आप अभी भी झूठ बोल रहे हैं. संसार में दो ही बटोही हैं. उन दोनों को मैं जानती हूं, बताइए वे दोनों कौन हैं ? तेज़ प्यास ने पहले ही कालिदास की बुद्धि क्षीण कर दी थी पर लाचार होकर उन्होंने फिर से अनभिज्ञता व्यक्त कर दी.
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बच्ची बोली- आप स्वयं को बङा विद्वान बता रहे हैं और ये भी नहीं जानते ? एक स्थान से दूसरे स्थान तक बिना थके जाने वाला बटोही कहलाता है. बटोही दो ही हैं, एक चंद्रमा और दूसरा सूर्य जो बिना थके चलते रहते हैं. आप तो थक गए हैं. भूख प्यास से बेदम हैं. आप कैसे बटोही हो सकते हैं ?
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इतना कहकर बालिका ने पानी से भरा मटका उठाया और झोपड़ी के भीतर चली गई. अब तो कालिदास और भी दुखी हो गए. इतने अपमानित वे जीवन में कभी नहीं हुए. प्यास से शरीर की शक्ति घट रही थी. दिमाग़ चकरा रहा था. उन्होंने आशा से झोपड़ी की तरफ़ देखा. तभी अंदर से एक वृद्ध स्त्री निकली. 
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उसके हाथ में खाली मटका था. वह कुएं से पानी भरने लगी. अब तक काफी विनम्र हो चुके कालिदास बोले- माते पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा.
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स्त्री बोली- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो. मैं अवश्य पानी पिला दूंगी. कालिदास ने कहा- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें. स्त्री बोली- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं. पहला धन और दूसरा यौवन. इन्हें जाने में समय नहीं लगता. सत्य बताओ कौन हो तुम ?
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अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश कालिदास बोले- मैं सहनशील हूं. अब आप पानी पिला दें. स्त्री ने कहा- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं. पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है. उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है.
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दूसरे, पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं. तुम सहनशील नहीं. सच बताओ तुम कौन हो ? कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले- मैं हठी हूं.
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स्त्री बोली- फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं. सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ? पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके कालिदास ने कहा- फिर तो मैं मूर्ख ही हूं.
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नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो. मूर्ख दो ही हैं. पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है.
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कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे. वृद्धा ने कहा- उठो वत्स ! आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी. कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए.
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माता ने कहा- शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार. तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा.
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कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े.
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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
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Sunday, 8 May 2016

अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया जो इस वर्ष 9May को है उसका महत्व क्यों है जानिए कुछ महत्वपुर्ण जानकारी
-🙏 आज  ही के दिन माँ गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था ।
🙏-महर्षी परशुराम का जन्म आज ही के दिन हुआ था ।
🙏-माँ अन्नपूर्णा का जन्म भी आज ही के दिन हुआ था 
🙏-द्रोपदी को चीरहरण से कृष्ण ने आज ही के दिन बचाया था ।
🙏- कृष्ण और सुदामा का मिलन आज ही के दिन हुआ था ।
🙏- कुबेर को आज ही के दिन खजाना मिला था ।
🙏-सतयुग और त्रेता युग का प्रारम्भ आज ही के दिन हुआ था ।
🙏-ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण भी आज ही के दिन हुआ था 
🙏- प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण जी का कपाट आज ही के दिन खोला जाता है ।
🙏- बृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में साल में केवल आज ही के दिन श्री विग्रह चरण के दर्शन होते है अन्यथा साल भर वो बस्त्र से ढके रहते है ।
🙏- इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था ।
🙏- अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है कोई भी शुभ कार्य का प्रारम्भ किया जा सकता है

The Art Of Living By Ramkrishna Paramhans to Swami Vivekananda

A rare conversation between Ramkrishna Paramahansa & Swami Vivekananda  READ IT LOUD TO FAMILY, it's one of  the best message I have come across....

1. Swami Vivekanand:- I can’t find free time. Life has become hectic.

Ramkrishna Paramahansa:- Activity gets you busy. But productivity gets you free.

2. Swami Vivekanand:- Why has life become complicated now?

Ramkrishna Paramahansa:- Stop analyzing life.. It makes it complicated. Just live it.

3. Swami Vivekanand:- Why are we then constantly unhappy?

Ramkrishna Paramahansa:- Worrying has become your habit. That’s why you are not happy.

4. Swami Vivekanand:- Why do good people always suffer?

Ramkrishna Paramahansa:- Diamond cannot be polished without friction. Gold cannot be purified without fire. Good people go through trials, but don’t suffer.
With that experience their life becomes better, not bitter.

5. Swami Vivekanand:- You mean to say such experience is useful?

Ramkrishna Paramahansa:- Yes. In every term, Experience is a hard teacher. She gives the test first and the lessons .

6. Swami Vivekanand:- Because of so many problems, we don’t know where we are heading…

Ramkrishna Paramahansa:- If you look outside you will not know where you are heading. Look inside. Eyes provide sight. Heart provides the way.

7. Swami Vivekanand:- Does failure hurt more than moving in the right direction?

Ramkrishna Paramahansa:- Success is a measure as decided by others. Satisfaction is a measure as decided by you.

8. Swami Vivekanand:- In tough times, how do you stay motivated?

Ramkrishna Paramahansa:- Always look at how far you have come rather than how far you have to go. Always count your blessing, not what you are missing.

9. Swami Vivekanand:- What surprises you about people?

Ramkrishna Paramahansa:- When they suffer they ask, “why me?” When they prosper, they never ask “Why me?”

10. Swami Vivekanand:- How can I get the best out of life?

Ramkrishna Paramahansa:- Face your past without regret. Handle your present with confidence. Prepare for the future without fear.

11. Swami Vivekanand:- One last question. Sometimes I feel my prayers are not answered.

Ramkrishna Paramahansa:- There are no unanswered prayers. Keep the faith and drop the fear. Life is a mystery to solve, not a problem to resolve. Trust me. Life is wonderful if you know how to live.

🌿Happiness@lways🌿