मृत्यु के क्षण में लोगों को रोते, उदास, बेचैन देखते हो - वह घबराहट मृत्यु की वजह से नहीं आती
वह घबराहट तो खो गये जीवन के बहुमूल्य अवसर के कारण आती है
एक अवसर मिला था, हाथ में आया और चला गया
मृत्यु से कोई कभी भयभीत नही होता, क्योंकि जिसे तुम जानते नहीं, उससे तुम भयभीत कैसे होओगे? मृत्यु को तुमने कभी देखा? उससे तुम डरोगे कैसे? अनजान से भय कैसा? उसने तुम्हें कभी कोई नुकसान पहुंचाया? कोई हानि की, जो तुम रोओगे, तड़पोगे, चिल्लाओगे? नहीं, असली बात और है।
मृत्यु के क्षण में तुम्हें पहली दफे समझ आती है कि सारा जीवन बेकार गया
बेकार के कार्यो में लगा रहा
अब समय न बचा और यह मृत्यु सामने आ गयी, अब क्या करूं? तुम्हारी सारी दीनता तुम्हारे जीवन भर के असफल जाने की कथा है
जिसने जीवन को ठीक से जीया और जिसने जीवन के रहस्य को जाना -पहचाना और जिसके मंदिर में परमात्मा प्रविष्ट हुआ
जिस के मनमंदिर का सिंहासन खाली न रहा
जिसके ह्रदय में प्रेम का रस भर गया और जिसकी रसना पर राम का नाम रहा - वह मृत्यु का आनन्द से स्वागत करता है।
जिसने जीवन को जाना, उसकी कोई मृत्यु नहीं है।
वह जीवन को जानकर मृत्यु को विश्राम की तरह पाता है - एक गहन विश्राम जीवन की थकान के बाद
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