Tuesday, 17 February 2015

रूपध्यान

रूपध्यान करते हुए प्रिया प्रियतम के साथ जिस लीला में जाना चाहो, चले जाओ तथा उनके दिव्य मिलन व दर्शन के लिये अत्यंत तड़पन पैदा करो । लाख आँसू बहाओ, लेकिन किसी भी आँसू को तब तक सच्चा न मानो, जब तक स्वयं श्यामसुंदर आकर उसे अपने पीताम्बर से न पोंछ लें । इतनी व्याकुलता पैदा करो कि नेत्र और प्राणों में बाजी लग जाये । एक-एक पल युग के समान लगने लगे । लेकिन यदि प्राणवल्लभ न आयें तो निराशा न आने पाये, प्रेमास्पद में दोष बुद्धि न आने पाये ।
---- श्री महाराजजी ।
Radhey Radhey

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