जिस जीव के हृदय में पश्चाताप है, वह परम उन्नति कर सकता है परन्तु जिसे अपने बुरे कर्मों पर दुःख नहीं होता, जो अपनी गिरी दशा का अनुभव नहीं करता, जिसे समय के व्यर्थ बीत जाने का पश्चाताप नहीं, वह चाहे कितना भी बड़ा विद्वान हो, कैसा भी ज्ञानी हो, कितना भी विवेकी हो, वह उन्नति के शिखर पर कभी भी नहीं पहुँच सकता । जहाँ पूर्वकृत कर्मों पर सच्चे हृदय से पश्चाताप हुआ, जहाँ सर्वस्व त्याग कर श्रीकृष्ण के चरणों में जाने की इच्छा हुई, वहीं समझ लो उसकी उन्नति का श्री गणेश हो गया । चौबीस घंटे में कितने घंटे राधाकृष्ण का चिन्तन करते हो? बस इसी प्रश्न का उत्तर एकांत में सोचो । और यदि बारह घंटे भी नहीं करते तो क्या चाह है? सोचो ।
श्री महाराज जी. .
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