देखिए संसार मे चौरासी लाख प्रकार के शरीर है उसमें केवल मनुष्य शरीर ऐसा है जिसमें हम साधना के द्वारा दुःखों से छुटकारा पाकर आनंद प्राप्त कर सकते है । "हम लोगो ने कभी नहीं सोचा,कि ये मानव देह की क्या इम्पोर्टेंस(importance) है....हम देख तो रहे हें, एक गढ़े में, करोडो कीड़े कैसा जीवन बिता रहे है....हम भी कभी वही थे......
एक जंगल का प्राणी, भूख के मारे मर जाता है, पानी के मारे मर जाता है, उससे बलवान प्राणी उसको खा जाता है, वो कुछ नहीं कर सकता...ये सब हम लोग देख रहे है आँख से, कि हम भी उन सब योनियों में जा चुके है और वे सब दुःख भोग चुके है और हम फिर वही गलती कर रहे है, कि मानव देह पाकर और इस देह का महत्व realize नहीं करते, महसूस नहीं करते. बहुत बार आप लोगों को बताया गया है कि देवता भी इस मानव देह को चाहते हैं, इसलिए सात अरब आदमियों। में सात करोड़ भी ऐसे नहीं है जिनके ऊपर भगवान की ऐसी कृपा हो कि कोई बताने वाला सही- सही ज्ञान करा दे कि क्या करने से तुम्हारे दुःख चले जायेंगे और आनंद मिल जाएगा । और जिन लोगों को ये सौभाग्य प्राप्त हो चुका है, ये जान चुके है किसी महापुरुष से वे लोग भी फिर चौरासी लाख का हिसाब बैठा रहे है । क्यों?
आपको बताया गया है कि जड़ भरत सरीखे परमहंस को भी हिरन बनना पड़ा। अंतिम समय में हिरन का चिंतन किया । आप लोग घर छोड़ कर आये है फिर घर वालों का चिंतन कयों करते है? चिंतन करने से क्या मिलेगा तुमको? यानी हम लोग अपने सर्व नाश के लिये प्रतिज्ञा किये है ऐ मन तुझको भगवान की ओर नहीं चलने देंगे । करोड़ कृपालु आवें। कयोंकि मरने के बाद मुझे फिर मनुष्य नहीं बनना है। कुत्ते, बिल्ली, गधे की योनियों में जाना है। क्यों शोक सवार है दुःख भोगनेका? नरकादी अनंत जन्मों का दुःख अरे सहा नहीं जाएगा इतना दुःख होगा, चीख- चीख कर रोवोगे कोई सुनने वाला नहीं होगा उस समय कृपालु भी कुछ नहीं कर सकते, भगवान भी कुछ नहीं कर सकते। आप लोग समझते है मरने के बाद देखा जायेगा। क्या देखोगे, फिर तो भोगोगे। एक विद्यार्थी परीक्षा के समय तीन घंटे में कुछ लिखता नहीं । या गलत फलत लिखता है तो देखा क्या जायेगा, उसका जब नंबर आयेगा, तो जीरो बटे सौ, तब मालूम हो।
आत्मा का कमाने का मामला सोचो। तुम आत्मा हो , शरीर नहीं हो। शरीर को तो छोड़ना पड़ेगा , जबरदस्ती छुड़वाया जायगा शरीर।
क्षणभंगुर जीवन की कलिका ,
कल प्रात को जाने खिली न खिली।
तो मैं आप लोगों से निवेदन करता हूँ, आज्ञा देता हूँ, प्रार्थना करता हूँ आप लोग अभ्यास करो। अच्छे बन जाओ। गंदा चिंतन बंद करो, मन की मत सुनो।
मैंने तुम लोगों के लिए इतना कुछ किया, उस के बदले में तुम लोग मुझे प्रेम (मन) नहीं दे सकते। कयों? तुम लोग मेरी मेहनत को ऐसे ही गँवा दोगे? मैं तुमसे एक बार प्रेम की भिक्षा माँग रहा हूँ। हमने अपना सारा जीवन तुम लोगों के लिये अर्पित किया है, इसलिए एक बार प्रेम (मन) की भिक्षा माँग रहा हूँ। अभ्यास करो, मन की मत सुनो। श्वास श्वास में राधे नाम का जप करो। अगर आप लोग मेरी बात मानकर दस दिन भी अभ्यास कर लेंगे तो फिर आपको आदत पड़ जायेगी। फिर आपसे रहा नहीं जायेगा। बिना राधे का जप किये। कोई भी चीज ज़बरदस्ती करो तो अभ्यास हो जाता है । मन में निश्चय करो की हमारा लक्ष्य भगवान ही रहें, हम भगवान के लिए ही सब काम करें, भगवान के लिए ही जियें और अंत में भगवान का स्मरण करते हुए ही इस नश्वर शरीर को त्याग कर भगवान के चरणों में चलें जाएँ । गुरु एवं भगवान में कभी भी भेद मत मानो सदा उन्हें अपने साथ मानो, अन्यथा मन मक्कारी करने लगेगा।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ।।
🙏Radhey Radhey🙏
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