सर्वत्र सर्वदा अपने सेव्य श्रीकृष्ण को साथ मानो इससे किसी पाप कर्म में प्रवृत्त न होंगे । यदि कभी होंगे तो तत्काल सावधान हो जायेंगे । सोचना पड़ेगा कि हम तो श्रीकृष्ण के हैं । अत: उनकी कृपा प्राप्त करने के लिये पाप कर्म नहीं करना चाहिये ( इत्यादि ) । जिस प्रकार आप अपने आपको सदा, सर्वत्र अनुभव करते हैं । इसी प्रकार अपने सेव्य श्रीकृष्ण को भी अनुभव करना है ।
----- श्री महाराजजी ।
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