Tuesday, 17 February 2015

मैं हूँ न...

मैं हूँ न. ......

1 फरवरी 2013 को सभी भक्त गंगा के किनारे खड़े नाव की प्रतीक्षा कर रहे हैं, मल्लाह ने बताया वैसे तो 50 लोग बैठ सकते हैं मेरी नाव में, किन्तु सुरक्षा के द्रष्टिकोण से 40 लोगों को ही बैठाया जाय । श्री महाराज जी हँसते हुये बोले, अरे सब बैठ जाओ, 40 हों, 50 हों, "मैं हूँ न " रक्षा करने के लिए ।

एक छोटी सी बच्ची अपने पापा के साथ जा रही थी । एक पुल पर पानी तेजी से बह रहा था । पापा ने कहा- बेटा डरो मत, मेरा हाथ पकड़ लो । बच्ची ने कहा- नहीं पापा आप मेरा हाथ पकड़ लो । पापा ने मुस्कुरा कर कहा- दोनों में क्या फर्क है? बच्ची- अगर में आपका हाथ पकडू और अचानक कुछ हो जाए तो शायद मैं हाथ छोड़ दूंगी । मगर आप मेरा हाथ पकडेंगे तो कुछ भी हो जाए आप मेरा हाथ नहीं छोडेंगे । 

ऐसे ही हमारा हाथ थामे हुए हैं 
हमारे पापा 'कृपालु' महाप्रभु!🙏🙏

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