नर तनु गुरु संग गोविन्द राधे।
प्रेम पिपासा तीनों लक्ष्य दिला दे।।
हमारा जो लक्ष्य है उस लक्ष्य को पाने के लिए तीन चीजें परमावश्यक हैं-
नंबर 1
मनुष्य का शरीर।
और किसी शरीर मे लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होगी।
आप आनंद प्राप्ति कहते हैं, भगवद् प्राप्ति कहते हैं, जो आप का अंतिम लक्ष्य है, उसको पाने का तीन साधन है, उसमे सबसे पहले है तनु।
क्योंकि इसी शरीर मे पुरुषार्थ करके लक्ष्य को पा सकता है और कोई शरीर नहीं है। एक मात्र मानव देह।
नंबर 2
गुरु संग।
गुरु मिलन नहीं, गुरु संग।
गुरु मिलन तो अनंत जन्म में अनंत बार हो चुका। हम उनके पास गये, स्पीच सुना, सिर हिलाया, समझ में भी आ गया, लेकिन प्रक्टिकल नहीं किया। मन का लगाव संसार में ही किया।
तो गुरु का संग। क्योंकि गुरु का संग नहीं करेंगे, तो 56 व्यंजन रखा हुआ है, हम खाते ही नहीं, बैठे हैं, देख रहे हैं, तो भूखे मरेंगे।
केवल गुरु मिलने से काम नहीं बनेगा। हम मन से संग करें, शरणागत होकर गुरु का, उनकी बुद्धि में अपनी बुद्धि जोड़ दें, ये दूसरी बड़ी कृपा।
नंबर 3
तीसरी कृपा प्रेम की पिपासा, प्यास, लालसा यानि खाना खाने की भूख, पाने की व्याकुलता, तड़पन।
प्यास की बहुत क्लास होती हैं। साधारण क्लास-
मिल जाये तो अच्छा है, थोड़ा प्रयास किया, नहीं मिला, तो हटाओ नहीं मिलेगी
और
नहीं, इसको पाना ही है।
लग गये इसके पीछे।
ऐसे प्यास भी अलग-अलग हैं।
ये वैराग्य पर डिपेंड करता है।
संसार से जितना वैराग्य होगा, उतना ही प्यास बढ़ेगा।
ये अभ्यास से ही होगा।
तो, प्रेम पाने की जितनी तेज हो, उतनी जल्दी लक्ष्य मिल जाएगा।
और ये हमारा काम है।
ये गुरु और भगवान नहीं करके देंगे।
- जगद्गुरू श्री कृपालुजी महाराज
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