सहनशीलता बढ़ानी है। किसी के भी निंदनीय शब्द से अथवा व्यवहार से मन में अशांति न हो ।
बस यही साधनाएवं दीनता है। किसी की निरर्थक बात को न सुनना है, न सोचना है।
यदि कोई दुराग्रह करके या अन्य कुसंग द्वारा अपना पतन करना ही चाहता है तो भगवान और महापुरुष क्या कर सकते हैं।
------श्री कृपालुजी महाराज।
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