एक बार श्रीचैतन्य महाप्रभु रास्ते में से जा रहे थे. उनके पीछे गौर भक्त वृन्द भी थे. महाप्रभु हरे कृष्णा का कीर्तन करते जा रहे थे.
"हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे॥"
कीर्तन करते करते महाप्रभु थोडा सा आगे निकल गए, उन्हें बड़ी जोर की प्यास लगी, परन्तु कही पानी नहीं मिला. तब एक व्यापारी सिर पर मिट्टी का घड़ा रखे सामने से चला आ रहा था. महाप्रभु ने उसे देखते ही बोले 'भईया बड़ी प्यास लगी है थोडा सा जल मिल जायेगा'.?
व्यापारी में कहा - 'मेरे पास जल तो नहीं है हाँ इस घडे में छाछ जरुर है'।. इतना कहकर उसने छाछ का घड़ा नीचे उतारा.। महाप्रभु बहुत प्यासे थे इसलिए सारी की सारी छाछ पी गए और बोले 'भईया बहुत अच्छी छाछ थी, प्यास बुझ गई'.।
व्यापारी बोला - 'अब छाछ के पैसे लाओ'.!
महाप्रभु - 'भईया पैसे तो मेरे पास नहीं है'.?
व्यापारी महाप्रभु के रूप और सौंदर्य को देखकर इतना प्रभावित हुआ कि उसने सोचा इन्होने नहीं दिया तो कोई बात नहीं इन के पीछे जो इनके साथ वाले आ रहे हैं, इनसे ही मांग लेता हूँ. महाप्रभु ने उसे खाली घड़ा दे दिया उसे सिर पर रख कर वह आगे बढ़ गया.।
पीछे आ रहे नित्यानंद जी और भी भक्त वृन्दो से उसने पैसे मांगे तो वे कहने लगे:- 'हमारे मालिक तो आगे चल रहे हैं, जब उनके पास ही नहीं है तो फिर हम तो उनके सेवक है हमारे पास कहाँ से आयेगे.?
उन सब को देखकर वह बड़ा प्रभावित हुआ और उसने कुछ नहीं कहा.। जब घर आया और सिर से घड़ा उतारकर देखा तो क्या देखता है कि घड़ा हीरे मोतियों से भरा हुआ है.।
एक पल के लिए तो बड़ा प्रसन्न हुआ पर अगले ही पल दुखी हो गया. मन में तुरंत विचार आया उन प्रभु ने इस मिट्टी के घड़े को छुआ तो ये हीरे मोती से भर गया, जब वे मिट्टी को ऐसा बना सकते है तो मुझे छू लेने से मेरा क्या ना हो गया होता.??
अर्थात प्रभु की भक्ति मेरे अन्दर आ जाती, झट दौडता हुआ उसी रास्ते पर गया जहाँ प्रभु को छाछ पिलाई थी.।
अभी प्रभु ज्यादा दूर नहीं गए थे. तुरंत उन के चरणों में गिर पड़ा 'प्रभु मुझे प्रेम का दान दीजिये.।'
प्रभु ने उठकर उसे गले से लगा लिया और उसका जीवन बदल गया. हमारी ऐसी दशा कब होगी..??
🙏🙏🙏🙏🙏
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