Friday, 24 April 2015

भक्ति शतक (दोहा - 78)


हरि संयोग वियोग महँ , बड़ो वियोग बताय।
कारण यह कि वियोग महँ , कण-कण श्याम लखाय।।७८।।

भावार्थ - श्यामसुन्दर के सयोंग एवं वियोग में वियोग को ही श्रेष्ठ माना गया है। क्योंकि वियोग में सर्वत्र केवल श्यामसुन्दर का ही दर्शन होता है।

-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

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