Saturday, 11 April 2015

जय सद्गुरु महराज


जयति जय, जय सद्गुरु महराज ।
बिनु कारण करुणाकर जाकर, अस स्वभाव भल भ्राज ।

भगवान् एवं महापुरुषों के अवतार का एक ही कारण होता है करुणा, कृपा कृपा कृपा,बस। येन केन प्रकारेण दिन-रात अपने सुख आराम को भूलकर वे जीव कल्याण के लिये अनेक प्रकार की लीलायें,क्रियायें करते हैं। अपने दिव्य स्वरूप को भूलकर मनुष्यों कि तरह अनेक व्यवहार करते हैं कि कैसे भी जीव भगवान् की और चलें और चलते-चलते अपने परम चरम लक्ष्य तक पहुँच जायें।कभी घण्टों संकीर्तन का रस लुटाते हैं, अष्ट सात्त्विक भावों के साथ नृत्य करते हैं, नये-नये भावपूर्ण दोहे बनाकर,संकीर्तन की नई-नई लाइनें बनाकर की ब्याख्या करते हैं, कभी JAGADGURU सिंहासन से अलौकिक, दिव्य प्रवचन देते हैं ताकि हम सब जीवों का तत्त्वज्ञान पक्का होता रहे और भगवद् पथ में निरन्तर आगे बढ़ते रहें।एक दिन भक्तों ने प्रवचन की प्रशंसा की तो श्री महाराज जी कहने लगे कि बृहस्पति, सरस्वती, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर आपस में बातचीत कर रहे हैं कि इन मृत्युलोक के साधारण से जीवों ने ऐसे कौन से पुण्य किये हैं जो सामने,साथ बैठकर प्रवचन का रस ले रहे हैं। फिर पुनः अगले दिन कहा कि दो प्रकार का रस होता है एक जैसे आम में रस भी होता है और गुठली भी होती है, सन्तरे में रस भी होता है बीजी भी होता है,रसगुल्ले में रस भी होता है और गुल्ला भी होता है और दूसरा रस होता है हमारा प्रवचन,जिसमें केवल रस ही रस होता है।श्री महाराज जी इतने सहज सरल हैं कि अपने प्यारे भक्त साधकों के मध्य बैठ कर उनकी जिज्ञासाओं का,प्रश्नों का बढ़ी आत्मीयता से समाधान करते हैं।उन्हें अपने सान्निध्य का सामीप्य का सुख देते हैं। एक बार तो  आपने अपनी प्यार भरी करुणा का,ममता का रिकार्ड ही तोड़ दिया कि अचानक कीर्तन के मध्य में ही जितने बूढ़े बीमार जो ह्वील चेआर पर बैठकर साधना करते हैं उन्हें अपने पास बुलाया और जहा की मेरे चरण दबाओ।वो सब विभोर होकर अपने प्राणप्रिय गुरुदेव के अपनी यथा शक्ति चरण दबाने लगे। आपकी ममतामयी सहज सनेही लीला को देखकर सबकी आँखों से आँसू बहने लगे, वाह! करुणा-वरुणालय मेरे गुरुदेव! बलिहारी है,बलिहारी है कि आप दीनबन्धु सरकार बनकर हम पतित जीवों पर केवल अपना प्यार ही प्यार,कृपा ही कृपा लुटा रहे हो।

"कृपालु अनंत कृपालु कथा अनंता"......!!!

'कृपालु'(अकारण दया,कृपा करने वाले)-यह सुमधुर नामधारी श्री कृपालु गुरुदेव ही हम सबके प्राणप्रिय गुरुदेव हैं जो रसिक शिरोमणि श्री कृष्ण के महाभाव रस में सदा स्नात रहते हैं यानि डूबे हुए रहते हैं उसी रस से। नाना प्रकार के मज़हब,धर्मों आदि के विभिन्न उपासक,साधक जो उन्हे अपना गुरु,रहबर,spiritual guide,मानकर साधना करते हैं,अपने-अपने अनुभवों के आधार पर उन्हे अलग-अलग अवतारों में देखता है।वे श्यामा-श्याम के रस-मानसरोवर में बाल-हंस की भाँति नित्य विहार करते हैं,जो रसिकों की नगरी वृन्दावन के भी न केवल रसिक प्रमुख हैं वरन जो श्यामसुंदर के उत्तुंग उफनते प्रेम-रस-ज्वार में सतत अनवरत डूबे रहते हैं,ऐसे हैं हमारे 'कृपालु सरकार'....... पापीजन जो उनकी शरण में चले जाते हैं उनके लिए वे श्री कृपालु-महाप्रभु(आवागमन रूपी संसार से) दिव्य धाम(नित्य सनातन परमानंदमय स्थान) तक पहुंचाने वाली (सुदृढ़) सीढ़ी हैं।इतना ही नहीं,सच्चे हृदय से बिलख-बिलखकर प्रायश्चित के आँसू बहाते हुए आतरनाद कर जो भी पापात्मा एक बार भी उनके चरणों में 'त्राहि माम,पाहि माम' पुकारते हुए गिर जाता है तो श्री गुरुदेव उसकी कातर पुकार सहन नहीं कर पाते,विह्वल होकर न केवल उसे गले ही लगा लेते हैं,बल्कि उसके हाथ बिक कर अपने आपको ही उसे समर्पित कर देते हैं। जितने सच्चे हम होंगे,उतने ही वो भी बल्कि उससे कई ज्यादा आपका योगक्षेम वहन करेंगे। वे सरल के लिए अत्यंत सरल,चालाक के लिए अत्यंत चालाक हैं।उनसे जीतना असंभव है।वे सिर्फ आँसुओं से,सच्ची पुकार प्रभु को पाने की जिस हृदय में उत्कंठा हो उसीसे रीझते हैं। उनको कोई जबरदस्ती रिझा नहीं सका,पैसे का अहंकार,पोस्ट का अहंकार,अन्य कई बल लिए जो उनके पास चला जाता है,उसकी और तो देखना भी पसंद नहीं करते गुरुदेव।और वो अहंकारी बेचारा उल्टे पैर वहाँ से चल देता है,अहंकार से तो सख्त परहेज है उनको। बड़े-बड़े अहंकारी लोग उनके यहाँ आए,लेकिन जिसने अपनी ज्ञान गठरिया उतार के फेंक दी,वो ही यहाँ टिका है। इनको आजतक विश्व में कोई भी चैलेंज नहीं दे सका ज्ञान में ,सब को अंदर ही अंदर पता है कौन है ये........बस उन बेचारों का अहंकार,मिथ्या ज्ञानभिमान उनको यहाँ आने नहीं देता। और आ भी जाये तो महाराजजी के यहाँ टिक ही नहीं सकता,वो लोग वास्तव में दया के पात्र हैं जो इस समय विश्व की महानतम विभूति से अपने दंभ की वजह से दूर हैं,अभी भी समय है,अहंकार त्याग दीजिये,और कृपालु महाप्रभु को सुनिए,समझिए,और उनकी शरण ग्रहण कर उनके द्वारा निर्दिष्ट साधना करके अपने परम चरम लक्ष्य भगवदप्राप्ति तक पहुचने का प्रयास कीजिये।

श्री महाराज से किसी साधक ने प्रश्न किया था कि महाराज जी आप निराश नहीं होते ? आप इतना कठिन परिश्रम करते हैं हम सबके साथ और हम लोगों की अवस्था कुत्ते की पूंछ की तरह ही है । आपके सामने बैठ कर आपके विपरीत सोचते रहते हैं । अत्यधिक आत्मीयता के साथ मुस्कुराते हुये गुरुदेव ने उत्तर दिया "मैं आशावादी हूँ । अगर महापुरुष और भगवान् आशावादी न हों तो इस संसार में कभी न आयें । मैंने तो अपराधों को देखना ही छोड़ दिया । सदैव आशा करता हूँ सुधार हो जायेगा।" धन्य हैं गुरुदेव आप और आपकी करुणा का विलास !
      राधे राधे. ..🙏

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