अरे मन! अस तृष्णा बलवान।
बड़े बड़े भूपति भये भूतल, उदय अस्त लौं भान।
तिन्हून की सोई दशा रही जो, एक भिखारिहीं जान।
यह तृष्णा नहि छोरति इन्द्रहूँ, जेहि सुरपति सब मान।
जब लौ नहि सुमिरहु मन निशिदिन, सुन्दर श्याम सुजान।
तब लौ सुख 'कृपालु' नहि पैहौं वेद पुरान प्रमान।।
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भावार्थ-अरे मन ये तृष्णा इतनी बलवती है की इस पृथ्वी पर बड़े बड़े राजा हुए जिनका संपूर्ण धरातल पर राज्य था किन्तु उनकी दशा भी ठीक एक भिखारी के समान थी ।
कहाँ तक कहें ये तृष्णा देवराज इंद्रा को भी नहीं छोड़ती जिसे सब देवताओं का स्वामी मानते हैं।
'श्री कृपालु जी' कहते हैं ,हे मन ! वेद पुरान चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे हैं की जब तक तू श्याम सुन्दर का निरंतर स्मरण नहीं करेगा तब तक सुख न पा सकेगा।
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( प्रेम रस मदिरा सिद्धान्त- माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
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