Wednesday, 15 April 2015

मैं देखू जिस ओर सखी री


मैं देखू जिस ओर सखी री,
सामने मेरे सावरियां
प्रेम ने जोगन मुझ को बनाया
तन को फूँका, मन को जलाया
प्रेम के दुख में डूब गया दिल
जैसे जल में गागरिया..!!
रो रो कर हर दुख सहना हैं
दुख सह सह कर चुप रहना हैं
कैसे बताऊ, कैसे बिछड़ी
पिया के मुख से बांसुरिया..!!
दुनियाँ कहती मुझ को दीवानी
कोई ना समझे प्रेम की बानी
साजन साजन रटते रटते,
अब तो हो गयी बावरिया..!!
कुँवरि बिनु, पल छिन कल न परे |
दुसह – विरह – दावानल परि यह, तन, मन, प्रान जरे |
पुनि पुनि ललिहिं नाम गुन गावत, नैनन नीर ढरे |
करि करि सुरति विहार निकुंजनि, उर नहिं धीर धरे |
‘हाय ! हाय ! कहि मुर्छित छिति पर, गिरत लतान तरे |
वेगि ‘कृपालु’ ललिहिं लै आवहु, उन बिन अब न सरे ||

भावार्थ – ( किशोरी जी के वियोग में विरही श्यामसुन्दर का विलाप )
हाय दैया ! अब तो किशोरी जी के बिना एक क्षण के लिए भी चैन नहीं पड़ता | अत्यन्त असह्य वियोग की अग्नि में पड़कर मेरा यह तन, मन, प्राण, सर्वस्व ही जला जा रहा है | बार – बार किशोरी जी के नाम एवं गुणों को गाते हुए निरन्तर ही आँसू बहाया करता हूँ | निकुंजों में किये हुए लीला – विहारों का बार – बार स्मरण करके हृदय किसी भी प्रकार धैर्य धारण नहीं कर पाता | हाय ! हाय !! कहकर एवं मूर्च्छित होकर, लताओं के नीचे भूमि पर बार – बार गिर पड़ता हूँ | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि अब शीघ्र ही किशोरी जी को ले आओ क्योंकि उनके बिना अब प्यारे श्यामसुन्दर का जीवित रहना अत्यन्त ही कठिन है | 

( प्रेम रस मदिरा मान – माधुरी ) 

No comments:

Post a Comment