भगवान् का मिलन इतना महत्वपूर्ण नहीं होता जितना कि जन का मिलन होता है । यदि यह सोचा जाय कि जन के मिलन से वो असीम आनन्द क्यों नहीं मिला तो उसका एकमात्र कारण यही है कि हमने इसका महत्व नहीं समझा । उसकी कृपा को नहीं सोचा और यदि ऐसी स्थिति में भगवान् भी मिल जाय तो क्या लक्ष्य और परिणाम उससे मिलेगा ? अत: कृपा को बार-बार अनुभव करना ही सर्वश्रेष्ठ साधना है ।
-------- श्री महाराजजी ।
राधे - राधे ।
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