किशोरी पद किंकर श्याम सुजान |
नवल – निकुंज – मंजु बिच नित ही, चापत चरनन कान्ह |
कबहुँक चँवर ढुरावत, कबहुँक, खड़ो लिये पिकदान |
बरसाने की गलियन बिच नित, करत लली – गुनगान |
माँगत कृपा किशोरी जू की, करि करि सुयश बखान |
दृग अँसुवन सों चरण पखारत, जब राधे कर मान |
हा हा ! खात सखिन सों याचत, राधे दर्शन दान |
गहवर गलिन रटत नित ‘राधे !’, बिँधे, प्रिया – दृग – बान |
बड़भागी ‘कृपालु’ सो पिवु जो, राधे हाथ बिकान ||
भावार्थ - श्री श्यामसुन्दर किशोरी जी के युगल चरण कमलों के सनातन दास हैं | सदा ही मनोहर नूतन निकुँजों के बीच किशोरी जी के चरणों को दबाया करते हैं | कभी तो श्यामसुन्दर किशोरी जी की चँवर डुलाते हैं, कभी पीकदान लिये खड़े रहते हैं | बरसाने की, गलियों में किशोरी जी के गुणों को गाते हुए फिरा करते हैं एवं किशोरी जी के यश का बखान करते हुए उनसे कृपा की भीख माँगते हैं | जब किशोरी जी मान करती हैं तब श्यामसुन्दर उनके चरणों में आँसू बहाते हुए मनाते हैं | किशोरी जी के वियोग में उनके दर्शनार्थ उनकी दासियों की हा ! हा ! खाते हैं | गह्वरवन की वीथियों में किशोरी जी के कटाक्षों से घायल हुए राधे ! राधे ! पुकारा करते हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि वे श्यामसुन्दर बड़े भाग्यशाली हैं जो हमारी स्वामिनी जी की दासता करते हैं |
( प्रेम रस मदिरा विरह - माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी
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