Thursday, 30 April 2015

Bhakti Shatak


हरि विरही विरहाग ते , पंचकोश जरि जाय।
त्रिगुण त्रिकर्म त्रिदोष सब , आपुहिं जाय नसाय।।७७।।

भावार्थ - श्यामसुंदर के वियोग की अग्नि में पांचो कोश अपने आप भस्म हो जाते हैं एवं तीनों गुण , तीनों कर्म , तीनों दोष भी स्वयं समाप्त हो जाते हैं।

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