प्रशन:-प्रसाद में भगवान क्या खाते हैं?
उत्तर:-कोई कहता हैं की सुक्ष्म रूप से प्रभु प्रसाद में से भोग लगाते हैं। कोई कहता हैं प्रभु केवल सुगंध स्वीकार करते हैं।हमारे ख्याल से यह सब तथ्य सही हो सकते हैं। परन्तु सही मायने से देखे तो प्रसाद में भगवान हमारा अहंकार खाते हैं और प्रसाद लौटा देते हैं। जब भी हम प्रसाद चडाने जाते हैं तो क्या कहते हैं की यह फल,मेवे,मिठाई "मैं लेकर आया हूँ" परन्तु जब इन को प्रभु के प्रति भोग में चढ़ा दिया जाता हैं तो मैं और मेरा समाप्त हो जाता हैं बन जाता हैं "प्रभु का प्रसाद"।यानि प्रभु ने "मैं" और "मेरा" के रूप में जो अभिमान था वह खा लिया जो बाकि रहा वह "अमृत रूपी प्रसाद"।🙏
🌹🌹🌹🌹राधे राधे🌹🌹🌹🌹
प्रश्न - जीव का भगवान में आकर्षण (प्रेम ) है , पर भगवान का जीव में आकर्षण कैसे है ?
उत्तर - आकर्षण तो भगवान और जीव - दोनों में है , पर भूल जीव में है , भगवान में नहीं | जैसे बच्चे को माँ का प्रेम नहीं दिखता , ऐसे ही संसार में आकर्षण होने के कारण मनुष्य को भगवान का प्रेम (आकर्षण ) नहीं दिखता | यदि भगवान का प्रेम दिखे (पहचान में आये ) तो उसका संसार में आकर्षण होगा ही नहीं |
भगवान कहते है -
' सब मम प्रिय सब मम उपजाए'
( मानस, उत्तर. ८६ |२ )
भगवान का प्रेम ही जीव को खींचता है , जिससे कोई भी परिस्थिति निरन्तर नहीं रहती |
🌹🌹🌹🌹राधे राधे🌹🌹🌹🌹
❓❓यदि हम निष्काम भाव से किसी व्यक्ति से प्रेम करे तो उसका क्या परिणाम होगा ?
🙌 कामना के कारण ही संसार है | कामना न हो तो सब कुछ परमात्मा ही है , संसार है ही नहीं | निष्काम प्रेम होने पर संसार नहीं रहेगा | कामना गयी तो संसार गया ! इसलिए निष्काम भाव से किसी के साथ भी प्रेम करें तो वह भगवान में ही हो जायगा |
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